कुछ भी हो यह जानकर बहुत खुशी हुई कि भारतीयों के दिलों पर राज करने वाले अपने अमित भैया हिन्दी कम्प्यूूटिंग की वर्तमान स्थिति पर नजर रखे हुए हैं।
नवभारत टाइम्स की ५७वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने व्याख्यान में अमिताभ ने कहा कि आजकल ऐसा साफ़्टवेयर उपलब्ध है जिसके सहारे रोमन में टाइप करने से ही देवनागरी में लिख देता है। उनका इशारा निश्चित ही लिप्यंतरण पर आधारित ध्वन्यात्मक देवनागरी सम्पादित्रों की तरफ था। उनका यह कहना कि रोमन के सहारे देवनागरी लिखने से देवनागरी को चोट पहुंच रही है, काफी हद तक ठीक है। किन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिये कि जो अपने पैर पर खड़ा होकर नहीं चल सकता उसे बैशाखी के सहारे चलाने के अच्छे परिणाम ही आते हैं - बैशाखी आदमी को स्थायी रूप से अचल बनने से बचा लेती है। लेकिन जिनके पैर बिलकुल ठीक हैं उन्हे बैसाखी देना निश्चय ही उन्हें अपंग बनाने की दिशा में आगे बढ़ाना है।
कम्प्यूटर पर देवनागरी लिखने के लिये सही तरीका चुनने की नीति यही होनी चाहिये कि जो लोग केवल रोमन की-बोर्ड में अभ्यस्त हैं वे देवनागरी लिखने के लिये 'ट्रान्सलिटरेशन पर आधारित ध्वन्यात्मक टूल' प्रयोग करें जबकि उन लोगों के लिये जिनके हाथ अभी 'रोमन-पैरालिसिस' के शिकार नहीं हुए हैं वे देवनागरी के लिये बनाये गये विशिष्ट कुंजी-पटल (जैसे इन्स्क्रिप्ट) का ही इस्तेमाल करें। मार्क ट्वेन की इस सूक्ति में यही समाधान छिपा हुआ है:
नवभारत टाइम्स की ५७वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने व्याख्यान में अमिताभ ने कहा कि आजकल ऐसा साफ़्टवेयर उपलब्ध है जिसके सहारे रोमन में टाइप करने से ही देवनागरी में लिख देता है। उनका इशारा निश्चित ही लिप्यंतरण पर आधारित ध्वन्यात्मक देवनागरी सम्पादित्रों की तरफ था। उनका यह कहना कि रोमन के सहारे देवनागरी लिखने से देवनागरी को चोट पहुंच रही है, काफी हद तक ठीक है। किन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिये कि जो अपने पैर पर खड़ा होकर नहीं चल सकता उसे बैशाखी के सहारे चलाने के अच्छे परिणाम ही आते हैं - बैशाखी आदमी को स्थायी रूप से अचल बनने से बचा लेती है। लेकिन जिनके पैर बिलकुल ठीक हैं उन्हे बैसाखी देना निश्चय ही उन्हें अपंग बनाने की दिशा में आगे बढ़ाना है।
कम्प्यूटर पर देवनागरी लिखने के लिये सही तरीका चुनने की नीति यही होनी चाहिये कि जो लोग केवल रोमन की-बोर्ड में अभ्यस्त हैं वे देवनागरी लिखने के लिये 'ट्रान्सलिटरेशन पर आधारित ध्वन्यात्मक टूल' प्रयोग करें जबकि उन लोगों के लिये जिनके हाथ अभी 'रोमन-पैरालिसिस' के शिकार नहीं हुए हैं वे देवनागरी के लिये बनाये गये विशिष्ट कुंजी-पटल (जैसे इन्स्क्रिप्ट) का ही इस्तेमाल करें। मार्क ट्वेन की इस सूक्ति में यही समाधान छिपा हुआ है:
"Blessed are the flexible, for they shall not be bent out of shape।"
( वे धन्य हैं जो लचीले हैं, क्योंकि वे बेढंग रूप में नहीं मोड़े जायेगें। )
6 comments:
मेरे विचार में अमिताभ की वो टिप्पणी एक अज्ञानी व्यक्ति द्वारा झाड़ा गया ज्ञान ही है.
कम्प्यूटर ने हिन्दी टाइपिंग अत्यंत आसान बना दिया है. व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार कुंजीपट अपना सकता है. और मेरा मानना है कि हिन्दी के लिए अंततः सबसे अधिक प्रचलित विधि फ़ोनेटिक ही होगी और इसमें कोई गलत नहीं है - बात आसानी से सीखने और उसमें महारत हासिल करने की ही है. और ज्यादा कुछ नहीं.
"Blessed are the flexible, for they shall not be bent out of shape."
--सही उद्धरण दिया है आपने. बाकि तो रवि भाई कह ही चुके हैं.
सही लिखा और सही टिपियाया रविरतलामीजी ने!
हर सफल व्यक्ति अपने क्षेत्र का महारथी होता है, जरूरी नहीं बाकि की बाते वह सही तरीके से कह पाये.
देवनागरी/हिन्दी कम्प्यूटिंग तिमंजला/त्रिस्तरीय/त्रिमुखी होने के कारण जटिल है। टाइपराइटरों के जमाने में अंग्रेजी की 48 कुंजियों पर ही येन-केन प्रकारेण देवनागरी अक्षरों को काट-छाँट कर पैबन्द की तरह चिपका कर काम चलाया गया, तो आज कम्प्यूटर के जमाने में भले ही आप 101 कुंजीवाले कीबोर्ड का प्रयोग करें या 105 कुंजीवाले कीबोर्ड का प्रयाग करें, अंग्रेजी के 26+26=52 अक्षरों के आधार पर ही येन-केन प्रकारेण देवनागरी टंकित करनी पड़ती है। चाहे इन्स्क्रिप्ट का प्रयोग करें, चाहे फोनेटिक का, चाहे wx का, चाहे युनिनागरी या बराह का। इन्स्क्रिप्ट की भी कई समस्याएँ हैं। हिन्दी के लिए सरल, शीघ्र तथा निर्भूल टंकण करनेवाली अनुकूल IME अभी भी अपेक्षित है।
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