03 July, 2019

अंग्रेजी अनेक समस्याओं की जननी है...

वे सारे विचार आधारहीन सिद्ध हो चुके हैं जो अंग्रेजी के महत्व को बहुत बढाचढाकर पेश करते थे।   इसके उलट अंगरेजी के कारण अनेक क्षेत्रों में भारत को बहुत हानि हुई है। उसमें से सबसे अधिक हानि भारत में शिक्षा की हुई है।  अंगरेजी के कारण चारों तरफ रट्टामार शिक्षा का बोलबाला हो गया है, क्रिटिकल चिन्तन की हमारी परम्परा गायब होने के कगार पर है।

नए अविष्कार, नए विचार और नई सोच पैदा करने के लिए मातृभाषा में ही छात्रों को शिक्षा देना पहली जरूरी शर्त है।  भारतीय भाषा ओं के पक्ष में बहुत से तर्क हैं-

* उत्तरोत्तर प्रगति करने वाले चीन-जापान-इस्राइल ने मातृभाषा को ही महत्व दिया

* अंग्रेजी पर आश्रित होने के कारण भारत में नए आविष्कारों का टोटा पड़ा।

* दशकों से नई सोच-नए विचार विश्व पटल पर गौण हो गए हैं।

* जब अपने भारत में मातृभाषा (संस्कृत आदि) का वर्चस्व था, तब हम दुनिया में सभी क्षेत्रों (गणित, साहिय, प्रौद्योगिकी, विज्ञान आदि ) में अग्रणी (विश्वगुरु और सोने की चिड़िया) थे।  हमने विश्व को शून्य दिया, बीजगणित, कैलकुलस आदि दिया।

* अंगरेजी भाषा लोकतन्त्र के नाम पर कलंक है। इस देश के ४५ प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते हैं जबकि मुसकिल से ५ प्रतिशत लोग टूटी-फूटि अंगरेजी बोल पाते हैं। पूरा देश अंगरेजी सीखने में बहुत अधिक समय बर्बाद कर रहा है। इस समय को विज्ञान प्रौद्योगिकी आदि के उन्नत और गहन अध्ययन में लगाकर देश का आर्थिक उन्नयन किया जा सकता है।

* देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा, और यदि शिक्षा को बदलना है तो भाषा को बदलना होगा।