रोमन लिपि और अंगरेजी भाषा ने हमें बहुत झेलाया । देवनागरी जैसी वैज्ञानिक लिपि को छोडकर रोमन मे हिन्दी लिखने की विवशता कला को काला और काला को कला बना देती थी । अंगरेजी सीखने मे आधा जीवन खपा डाला , पर अब भी डिक्शनरी सिर पर लादे घूमना पडता है । खुशी की बात है की अब हमारी और सबकी मजबूरी समाप्त हो रही है ।
यूनिकोड का अवतरण इस परोक्ष गुलामी को हटाने मे पहला सार्थक कदम रहा है ।यूनिकोड के प्रचलन से विश्व की सभी प्रमुख लिपियाँ एक समान तल पर आ खडी हुई हैं । कम्यूटर और साफ़्टवेयर के सामने अब सब लिपियाँ समान हैं । आने वाले समय मे अब कोई अनाडी नही कहेगा कि कम्प्यूटर तो अंगरेजी मे काम करता है ।
भाषा-तकनीकी गैर-अंग्रेजी भाषाओं के लिये दूसरा वरदान बनकर आयी है । इसमे तरह-तरह के मशीन-अनुवादों का स्थान सर्वोपरि है । बहुत सारे मशीन-अनुवादक पहले ही आ चुके हैं । कई भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद के लिये 'अनुसारक' व अन्य अनुवादक वर्तमान हैं । इन अनुवादकों की कार्य-कुशलता निरन्तर बढ रही है ।
इसी दिशा में एक बहुत महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चल रहा है । इसका नाम है ,UNL प्रोजेक्ट , जो संयुक्त राष्ट्र संघ के टोकियो स्थित विश्वविद्यालय मे चल रहा है । भारत भी इसमे शामिल है । इसके अन्तर्गत एक युनिवर्सल नेटवर्किंग लैंग्वेज का निर्माण चल रहा है । किसी भी भाषा से किसी अन्यभाषा मे अनुवाद के लिये रास्ता UNL से होकर जायेगा जिससे अनेक लाभ होंगे ।
इस प्रोजेक्ट के क्रान्तिकारी परिणाम होंगे । कुल मिलाकर संजाल पर स्थित सब कुछ भाषा-निरपेक्ष हो जायेगा । सोचो कितना मजा आयेगा । हर कोई उस भाषा मे पढेगा , लिखेगा जो उसके लिये सहज होगी । हमारी पहुँच केवल अंगरेजी जानने वालों तक सीमित नही रहेगी वरन चीनी , जापानी , फ़्रान्सीसी, जर्मन , तमिल , तेलगु सहित सारी मनवता तक हो जायेगा । ज्ञान पर केवल किसी छोटे समूह का अधिकार नही रहेगा । हर कोई बोलेगा , हर कोई सुनेगा , समझेगा । हर कोई सक्षम-हुआ अनुभव करेगा ।
खुशी की बात है कि वह दिन दूर नही है ।
कहते हैं कि कम्प्यूटिंग सर्वव्यापी हो जायेगी , सबके पास (पाकेट में) एक या अधिक कम्प्युटर होंगे , सब सबसे जुडे होंगे और सूचना हवा की तरह मुफ़्त मिलेगी । अब इसमे यह भी जोड सकते हैं कि कम्प्यूटिंग लिपि-निरपेक्ष और भाषा-निरपेक्ष हो जायेगी । तथास्तु !
5 comments:
१०० करोड देसी
४० हिंदी ब्लागिये
१० सक्रीय, २० सुप्त, बाकी निष्क्रीय
जरूर आयेगा बदलाव मेरे सपनों मे!
मैंने आपके इस चित्ताकर्षक वर्णन को पढ़कर उस दिन की प्रतीक्षा करना शुरू कर दिया है। भगवान और संयुक्त राष्ट्र की कृपा से वह दिन शीघ्र ही आए। वैसे ई-स्वामी जी, यह तूफान से पहले की शान्ति है। कुछ के सपनों में बड़ा और रचनात्मक बदलाव आने पर बाहर भी जल्द ही तेज़ी से बदलाव की बयार बहेगी।
अंग्रेज़ी की गुलामी , भाषा निरपेक्ष , लिपि निरपेक्ष ?? इन सब चीज़ों से हमें क्या लेना देना? मेरे खयाल से अंग्रेज़ी से लड़ने की बात बेमानी है? हमें सिर्फ़ ये देखना है कि हिन्दी को कैसे ज्यादा से ज्यादा मजबूत किया जाय और कैसे इसका प्रचार किया जाय .. मेरी मोटी बुद्धि में तो सिर्फ़ यही बात समझ में आती है.
रमण भाई ,
मैं किसी भाषा का विरोध कहाँ कर रहा हूँ ? मैने जो कुछ लिखा है वह यह है कि भाषा-निरपेक्ष और लिपि णिरपेक्ष कम्प्यूटिंग से सबको फायदा होगा ; हिन्दी को , जापानी को , फ्रेन्च को और अंगरेजी को भी |
इसलिये ये निरपेक्षता बहुत महत्वपूर्ण है , सार्थक है |
अनुनाद
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