अमेरिकी काँग्रेस ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानो (IITs) और भारत-अमेरिकी समाज के योगदान को विधिवत स्वीकार किया है और उनकी सराहना की है । भारत के लिये इस समाचार का क्या अभिप्राय है ? खुशी की बात है या चिन्ता का विषय ? भारत की जनसंख्या को देखते हुए मुझे तो यह शुभ समाचार ही लगता है । " हम बाहर भी खिलाते है और अन्दर भी " ।
विस्तृत समाचार यहाँ पढें ।
अकस्मात , स्वछन्द एवम उन्मुक्त विचारों को मूर्त रूप देना तथा उन्हे सही दिशा व गति प्रदान करना - अपनी भाषा हिन्दी में ।
29 April, 2005
26 April, 2005
भारतीय भाषाओं को दयानिधि का वरदान
रविशंकर भाई पिछले सप्ताह एक समाचार को लेकर निराश हो रहे थे ( तमिल हँसे , हिन्दी रोये ) । अब खुश होने की बारी है । दयानिधि सबको एक दृष्टि से देखते है । उनका यह कदम भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटिंग के क्षेत्र मे एक छोटा किन्तु सकारात्मक और प्रगामी कदम है ..
25 April, 2005
शीघ्र आयेगा हिन्दी सर्च ईंजन
हिन्दी वेब-सर्च अब केवल यूनिकोडित पन्नों तक सीमित नही रहेगी । अब विभिन्न प्रकार से कोडित हिन्दी के पन्नों को खोजना शीघ्र संभव होने वाला है ।
यह समाचार पढिये ..
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22 April, 2005
आशा ही जीवन है
मानव जीवन द्वन्दों से भरा पडा है । सुख-दुख , लाभ-हानि , जय-पराजय आदि कुछ मुख्य द्वन्द हैं जो हर किसी के जीवन मे चाहे अनचाहे आते ही रहते हैं। इस संसार मे सबकी क्षमताएँ भिन्न-भिन्न और सीमित हैं । इसलिये कोइ भी अपनी सारी इच्छाएँ पूरी नही कर सकता । जैसे-जैसे हम आगे बढते हैं हमको अपनी सीमाओं का ज्ञान होने लगता है ।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेसु कदाचन " मे कर्म और फल में एक सकारात्मक संबन्ध है , किन्तु यहां एक नकारात्मक भाव भी है । वह यह है कि केवल आपके द्वारा किया गया कर्म ही फल का निर्धारण नही करता वरन और भी अनेक कारक फल को प्रभावित करते है जिन पर आपका कोइ नियंत्रण नही है । इसीलिये मै मानता हूँ कि आशा ही जीवन है कयोंकि जीवन मे इतनी अनिश्चितताओं के बावजूद भी हर कोई आशा के सहारे ही जी रहा है । जैसे-जैसे हम सफल होते जाते है हमारी आशाओं का स्तर बढता जाता है । इसके विपरीत जैसे-जैसे हम असफल होते जाते हैं , हमारी आशाओं का स्तर स्वतः ही नीचे आता जाता है किन्तु आशाएं बिल्कुल समाप्त नही होती । और जो पूरी तरह निराश हो जाता है वह अपना जीवन ही समाप्त कर देता है ।
आशा का दूसरा पहलू भी है । बहुत से लोगों का मानना है कि आशामय दृष्टिकोण हमारी क्षमता और दक्षता को बढाता है । इससे सफलता और पास आ जाती है । इसके विपरीत निराशाग्रस्त व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक क्षमता घटती जाती है और सफलता उससे दूर भागती जाती है ।
एक और प्रकार की आशा है जिसे मैं संस्कृत के महान कवि भवभूति का आशावाद कहूंगा । इनका मानना है कि कोई भी प्रयास निरर्थक नही जाता ।
' आपका कोई न कोई समान-धर्मा अवश्य उत्पन्न होगा क्योंकि समय का कोई अन्त नही है और पृथ्वी बहुत बडी है । "
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेसु कदाचन " मे कर्म और फल में एक सकारात्मक संबन्ध है , किन्तु यहां एक नकारात्मक भाव भी है । वह यह है कि केवल आपके द्वारा किया गया कर्म ही फल का निर्धारण नही करता वरन और भी अनेक कारक फल को प्रभावित करते है जिन पर आपका कोइ नियंत्रण नही है । इसीलिये मै मानता हूँ कि आशा ही जीवन है कयोंकि जीवन मे इतनी अनिश्चितताओं के बावजूद भी हर कोई आशा के सहारे ही जी रहा है । जैसे-जैसे हम सफल होते जाते है हमारी आशाओं का स्तर बढता जाता है । इसके विपरीत जैसे-जैसे हम असफल होते जाते हैं , हमारी आशाओं का स्तर स्वतः ही नीचे आता जाता है किन्तु आशाएं बिल्कुल समाप्त नही होती । और जो पूरी तरह निराश हो जाता है वह अपना जीवन ही समाप्त कर देता है ।
आशा का दूसरा पहलू भी है । बहुत से लोगों का मानना है कि आशामय दृष्टिकोण हमारी क्षमता और दक्षता को बढाता है । इससे सफलता और पास आ जाती है । इसके विपरीत निराशाग्रस्त व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक क्षमता घटती जाती है और सफलता उससे दूर भागती जाती है ।
एक और प्रकार की आशा है जिसे मैं संस्कृत के महान कवि भवभूति का आशावाद कहूंगा । इनका मानना है कि कोई भी प्रयास निरर्थक नही जाता ।
' आपका कोई न कोई समान-धर्मा अवश्य उत्पन्न होगा क्योंकि समय का कोई अन्त नही है और पृथ्वी बहुत बडी है । "
12 April, 2005
आ रहा है लिपि व भाषा निरपेक्ष कम्प्यूटिंग का युग
रोमन लिपि और अंगरेजी भाषा ने हमें बहुत झेलाया । देवनागरी जैसी वैज्ञानिक लिपि को छोडकर रोमन मे हिन्दी लिखने की विवशता कला को काला और काला को कला बना देती थी । अंगरेजी सीखने मे आधा जीवन खपा डाला , पर अब भी डिक्शनरी सिर पर लादे घूमना पडता है । खुशी की बात है की अब हमारी और सबकी मजबूरी समाप्त हो रही है ।
यूनिकोड का अवतरण इस परोक्ष गुलामी को हटाने मे पहला सार्थक कदम रहा है ।यूनिकोड के प्रचलन से विश्व की सभी प्रमुख लिपियाँ एक समान तल पर आ खडी हुई हैं । कम्यूटर और साफ़्टवेयर के सामने अब सब लिपियाँ समान हैं । आने वाले समय मे अब कोई अनाडी नही कहेगा कि कम्प्यूटर तो अंगरेजी मे काम करता है ।
भाषा-तकनीकी गैर-अंग्रेजी भाषाओं के लिये दूसरा वरदान बनकर आयी है । इसमे तरह-तरह के मशीन-अनुवादों का स्थान सर्वोपरि है । बहुत सारे मशीन-अनुवादक पहले ही आ चुके हैं । कई भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद के लिये 'अनुसारक' व अन्य अनुवादक वर्तमान हैं । इन अनुवादकों की कार्य-कुशलता निरन्तर बढ रही है ।
इसी दिशा में एक बहुत महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चल रहा है । इसका नाम है ,UNL प्रोजेक्ट , जो संयुक्त राष्ट्र संघ के टोकियो स्थित विश्वविद्यालय मे चल रहा है । भारत भी इसमे शामिल है । इसके अन्तर्गत एक युनिवर्सल नेटवर्किंग लैंग्वेज का निर्माण चल रहा है । किसी भी भाषा से किसी अन्यभाषा मे अनुवाद के लिये रास्ता UNL से होकर जायेगा जिससे अनेक लाभ होंगे ।
इस प्रोजेक्ट के क्रान्तिकारी परिणाम होंगे । कुल मिलाकर संजाल पर स्थित सब कुछ भाषा-निरपेक्ष हो जायेगा । सोचो कितना मजा आयेगा । हर कोई उस भाषा मे पढेगा , लिखेगा जो उसके लिये सहज होगी । हमारी पहुँच केवल अंगरेजी जानने वालों तक सीमित नही रहेगी वरन चीनी , जापानी , फ़्रान्सीसी, जर्मन , तमिल , तेलगु सहित सारी मनवता तक हो जायेगा । ज्ञान पर केवल किसी छोटे समूह का अधिकार नही रहेगा । हर कोई बोलेगा , हर कोई सुनेगा , समझेगा । हर कोई सक्षम-हुआ अनुभव करेगा ।
खुशी की बात है कि वह दिन दूर नही है ।
कहते हैं कि कम्प्यूटिंग सर्वव्यापी हो जायेगी , सबके पास (पाकेट में) एक या अधिक कम्प्युटर होंगे , सब सबसे जुडे होंगे और सूचना हवा की तरह मुफ़्त मिलेगी । अब इसमे यह भी जोड सकते हैं कि कम्प्यूटिंग लिपि-निरपेक्ष और भाषा-निरपेक्ष हो जायेगी । तथास्तु !
यूनिकोड का अवतरण इस परोक्ष गुलामी को हटाने मे पहला सार्थक कदम रहा है ।यूनिकोड के प्रचलन से विश्व की सभी प्रमुख लिपियाँ एक समान तल पर आ खडी हुई हैं । कम्यूटर और साफ़्टवेयर के सामने अब सब लिपियाँ समान हैं । आने वाले समय मे अब कोई अनाडी नही कहेगा कि कम्प्यूटर तो अंगरेजी मे काम करता है ।
भाषा-तकनीकी गैर-अंग्रेजी भाषाओं के लिये दूसरा वरदान बनकर आयी है । इसमे तरह-तरह के मशीन-अनुवादों का स्थान सर्वोपरि है । बहुत सारे मशीन-अनुवादक पहले ही आ चुके हैं । कई भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद के लिये 'अनुसारक' व अन्य अनुवादक वर्तमान हैं । इन अनुवादकों की कार्य-कुशलता निरन्तर बढ रही है ।
इसी दिशा में एक बहुत महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चल रहा है । इसका नाम है ,UNL प्रोजेक्ट , जो संयुक्त राष्ट्र संघ के टोकियो स्थित विश्वविद्यालय मे चल रहा है । भारत भी इसमे शामिल है । इसके अन्तर्गत एक युनिवर्सल नेटवर्किंग लैंग्वेज का निर्माण चल रहा है । किसी भी भाषा से किसी अन्यभाषा मे अनुवाद के लिये रास्ता UNL से होकर जायेगा जिससे अनेक लाभ होंगे ।
इस प्रोजेक्ट के क्रान्तिकारी परिणाम होंगे । कुल मिलाकर संजाल पर स्थित सब कुछ भाषा-निरपेक्ष हो जायेगा । सोचो कितना मजा आयेगा । हर कोई उस भाषा मे पढेगा , लिखेगा जो उसके लिये सहज होगी । हमारी पहुँच केवल अंगरेजी जानने वालों तक सीमित नही रहेगी वरन चीनी , जापानी , फ़्रान्सीसी, जर्मन , तमिल , तेलगु सहित सारी मनवता तक हो जायेगा । ज्ञान पर केवल किसी छोटे समूह का अधिकार नही रहेगा । हर कोई बोलेगा , हर कोई सुनेगा , समझेगा । हर कोई सक्षम-हुआ अनुभव करेगा ।
खुशी की बात है कि वह दिन दूर नही है ।
कहते हैं कि कम्प्यूटिंग सर्वव्यापी हो जायेगी , सबके पास (पाकेट में) एक या अधिक कम्प्युटर होंगे , सब सबसे जुडे होंगे और सूचना हवा की तरह मुफ़्त मिलेगी । अब इसमे यह भी जोड सकते हैं कि कम्प्यूटिंग लिपि-निरपेक्ष और भाषा-निरपेक्ष हो जायेगी । तथास्तु !
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