31 August, 2008

टूल बिना सब सून

किसी ने खूब कहा है की मनुष्य औजारों का उपयोग कराने वाला जानवर है। बिना उपकरणों के वह कुछ भी नहीं है ; उपकरण होने पर वह सब कुछ है। विंस्टन चर्चिल ने कभी कहा था कि हमें औजार दो और काम पूरा हो जायेगा .

किसी मौजूदा औजार को किसी अब तक अज्ञात काम के लिए प्रयोग करना भी अपने आप में रचनात्मकता है; नवाचार (इन्नोवेसन) है।

आइये हिन्दी-विकिपीडिया में अंत:निर्मित सम्पादक के एक ऐसे ही उपयोग की बात करें। यह एक ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिप्यान्तरण औजार है जो रोमन की-बोर्ड के सहारे टाइप किए गए पाठ को हाथोहाथ देवनागरी में बदलता जाता है। तो क्या? बताता हूँ..

यदि आपके पास कोई ऐसा टेक्स्ट है जो अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में है या कई लिपियों का मिश्रित रूप है और आप इन लिपियों में लिखे टेक्स्ट को प्रभावित किए बिना इसमे कुछ देवनागरी के नए टेक्स्ट डालना चाहते हैं या इसमे स्थित देवनागरी टेक्स्ट को बदलना चाहते हैं तो यह बड़े काम की चीज है। इस प्रकार यह हिन्दी में कंटेंट-सृजन के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि ऐसा मसाला हमको अक्सर मिल जाता है जिसका थोड़ा सा मूल्यवर्धन (वैल्यू ऐडीशन) करने से एक उपयोगी कन्टेन्ट बन जाता है।

इसका उपयोग कैसे करें? हिन्दी-विकिपीडिया के किसी पृष्ट को खोलिए और उसे एडिट कराने के लिए क्लिक कीजिए । यह सम्पादक हाजिर हो जायेगा। इसके टेक्स्ट-बॉक्स में अपना मौजूदा टेक्स्ट पेस्ट कीजिए और जहाँ-जहाँ देवनागरी टेक्स्ट डालना हो डाल दीजिये। काम पूरा करने के बाद इस टेक्स्ट को कापी कर लीजिये और अभीष्ट जगह पर चिपका दीजिये। ध्यान रखिये कि इसे विकिपीडिया में 'सेव' नहीं करना है नही तो जो पेज आपने खोला है वह बदल जायेगा और उस टोपिक का अनर्थ हो जाएगा।
जाँच के लिए यहाँ जाइए

कहने की जरूरत नहीं कि यह काम किसी अन्य संपादक से भी किया जा सकता है जो हाथोहाथ बदलाव करता है; केवल नए टाइप किऐ को देवनागरी में बदलता हो; वह नहीं जो रोमन में लिखे को
एकमुश्त देवनागरी में बदल देता हो

19 August, 2008

ज्ञान केवल अंग्रेजी की बपौती नहीं है

महाभारत के बारे में कहा जाता है कि "यद् इहास्ति तद् अन्यत्र, यद् इहास्ति तद् क्वचिद" (जो यहाँ है वह अन्यत्र हो सकता है, लेकिन जो यहाँ नहीं है वह कहीं नही है) यह बात शायद धर्म के बारे में कही गयी है। किन्तु इसी तरह का वक्तव्य कुछ लोग अंग्रेजी के बारे में भी उवाचते हुए मिल जाते हैं। ऐसे लोगों के इस भ्रम की दवा गूगल अनुवाद है। आइये देखें, कैसे ?

अधिकांश लोगों को पता होगा कि विकिपीडिया के लेख सैकड़ों भाषाओं में हैं - अंग्रेजी, जर्मन, फ़्रेंच, हिन्दी आदि। आप अपने पसन्द के किसी टापिक पर पहले अंग्रेजी में लेख देखिये। इसके बाद फ़्रेंच, जर्मन आदि में भी उस टापिक पर लेख देखिये। (इसके लिये बांये तरफ़ लिंक मिल जाते हैं।) यदि आपको इन भाषाओं में लिखा नहीं समझ आता है तो कोई बात नहीं - गूगल अनुवादक का सहारा लीजिये। इन्हे अंग्रेजी या हिन्दी में अनुवाद करके पढ़िये। गूगल अनुवादक आजकल इतना कारगर तो हो ही गया है कि विषय के औसत जानकर को सब बातें समझ में जाती हैं। इस प्रयोग से आप पायेंगे कि एक-दो भाषाओं में अवश्य ही ऐसा कुछ है जो अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है - कभी कोई चित्र, कभी कोई उपशीर्षक, कभी कोई समीकरण, कभी कोई चार्ट, कभी प्रस्तुतीकरण की अलग शैली, कभी कोई भिन्न
दृष्टिकोण यही गूगल अनुवादक का असली योगदान है जो हमें अंग्रेजी के कुएँ से भी बाहर झांकने की सुविधा देता है।

मै इस प्रयोग का बहुतायत में प्रयोग करता रहता हूँ। हिन्दी विकिपीडिया पर लेख लिखते समय इसका भरपूर उपयोग करता
हूँ।

10 August, 2008

अथातो भ्रम जिज्ञासा

कहते हैं की दवा जितनी कड़वी होती उतना ही लाभकर। विषस्य विषमौषधम् ( विष की दवा विष ही होती है )। एक समय था जब कांग्रेस पार्टी ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया था ; आज एक विदेशी ही उसका सिरमौर है। भारत में पितृ-पक्ष में लोग पितरों ( पूर्वज ) को श्राद्ध देते हैं; विवाहादि के समय पितरों को निमंत्रण दिया जाता है ; लेकिन उसी भारत में आज के बेटा-बहू अपने साथ अपने माँ -बाप तक को रखना नहीं चाहते। पहले कहते थे कि शिष्य पर सदा गुरु का ऋण रहता है ; आजकल के ट्यूशनखोर गुरू पहले ही भारी भरकम फीस लेकर शिष्य को कर्ज के बोझ तले दबाने में मदद कर रहे हैं।

जीवन विरोधाभासों से भरा पडा है। कई बार तर्कसम्मत न लगने वाली चीजें ही सही होती हैं। विज्ञ लोग विरोधाभासों को जानते ही नहीं , उनका भरपूर उपयोग करते हैं। आइये देखें कि श्लोकों , कविताओं एवं सूक्तियों में विरोधाभासों का चित्रण किस प्रकार किया गया है-


सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर होय ।

काटे पै कदली फरै, कोटि जतन को सींच ।

लघुता से प्रभुता मिलै, प्रभुता से प्रभु दूर ।

काहे रे नलिनी तू कुम्हिलानी, तेरे हि नालि सरोवर पानी ।

जेतो नीचे ह्वै चले, तेरो ऊंचो होय ।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।

स्वयं महेश: श्वसुरो नगेश:
सखा धनेश: तनयो गणेश:।
तथापि भिक्षाटनमेव शम्भो:
बलीयसी केवलं ईश्वरेक्षा ।।

(भगवान शंकर स्वयं महेश ( महा ईश ) हैं; उनके स्वसुर नगेश (पहाड़ों के राजा, हिमालय) हैं; उनके मित्र धनेश (कुबेर) हैं और पुत्र गणेश (गणों के स्वामी) हैं। तथापि वे भीख मांगते हैं! इश्वर की इच्छा ही सबसे बलवान है। )

ब्रह्म सत्यं, जगत मिथया ( ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है; अर्थात जो दिखता है वह सत्य नहीं है, जो नहीं दिखता वही सही है।)

ज्यों-ज्यों भीगै श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होई ।
(ज्यों-ज्यों काले रंग में भीगते हैं, त्यों-त्यों साफ होते जाते हैं !!)

एक: चन्द्र: तमो हन्ति..
(एक ही चन्द्रमा अंधकार को हर लेता है, किन्तु असंखय तारागण नहीं)



इसी तरह:

दीपक की लौ बुझने से पूर्व तेज हो जाती है।

मधुरी बानी, दगाबाज की निशानी ।

अधजल गगरी छलकत जाय, भरी गगरिया चुप्पे जाय।

ज्यों खरचे, त्यों-त्यों बढ़े (विद्या)

दीपक तले अंधेरा !

गुरू गुड़, चेला चीनी ..

Anxiety rests the head that wears the crown.

संतोषं परमं सुखम् ( जिसके पास कुछ नहीं है, वही सबसे सुखी है ।)


( अथातो ब्रह्म जिज्ञासा - अर्थात अब ब्रह्म विषयक जिज्ञासा आरम्भ होती हैयह वेदान्त दर्शन या ब्रह्म सूत्र का आरंभिक सूत्र है। )