प्रतिभास

अकस्मात , स्वछन्द एवम उन्मुक्त विचारों को मूर्त रूप देना तथा उन्हे सही दिशा व गति प्रदान करना - अपनी भाषा हिन्दी में ।

24 November, 2005

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Posted by अनुनाद सिंह at 5:51 PM

1 comment:

Arpit said...

Aapka Post bahut achha laga

16 February, 2019 16:09

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अनुनाद सिंह
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प्रबन्धन एवं योग्यता

अमंत्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
—
शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।

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कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥

— पंचतंत्र
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है?

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