18 September, 2005

तेरहवीं अनुगूँज : संगति की गति




प्रसिद्ध दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री आदम स्मिथ का विचार था कि जब अमीर और गरीबी एक-दूसरे के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाते हैं तो धीरे-धीरे दोनो के आजीविका के स्तर में समानता आने लगती है । यही संगति की गति है ।

यद्यपि स्मिथ ने संगति के आर्थिक पहलू को प्रकाशित किया फिर भी संगति का प्रभाव बहु-आयामी है । आधुनिक शिक्षा , वस्तुतः बौद्धिक-संगति का एक औपचारिक रूप है । गुरू का महत्व परोक्ष रूप से संगति के महत्व को कुछ और नाम देना है । आज भूमण्डलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) के चहुँदिशि प्रशंसा हो रही है । भूमण्डलीकरण के लाभ भी तो वस्तुत: सत्संगति के ही लाभ हैं । तकनीकी क्षेत्र में "कोलैबोरेशन" के जो लाभ दीखते हैं वे सब तकनीकी-संगति के ही प्रभाव हैं । सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में तो संगति के प्रभावों पर बहुत कुछ लिखा और कहा गया है ।

संगणक और संजाल ने चिर परिचित सत्संगति को एक नया रूप प्रदान किया है । इस नये रूप में सत्संगति बहुत हद तक स्थान (देश) , समय (काल) और व्यक्ति (गुरू) की सीमाओं से मुक्त हो गयी है । संजाल-आधारित विभिन्न चर्चा-समूह , चिट्ठे और ई-पत्रादि इसके विविध रूप है । बहुत से लोगों का ऐसा विचार है इस नवीन संगति के प्रभाव से संसार का स्वरूप ही बदल जायेगा ।

खास बात यह है कि संगति का प्रभाव एकदिश ( यूनीडाइरेक्शनल ) न होकर द्विदिश या बहुदिश होता है । या यों कहें , केवल क्रिया न होकर क्रिया-प्रतिक्रिया जैसा है । आधुनिक शिक्षा के उच्चतम स्तर पर शिक्षक और शिक्षार्थी में भेद समाप्त हो जाता है । अक्सर गुरू , गुड ही रह जाते हैं और चेला , चीनी बन जता है ।

संगति का एक और प्रभाव देखने में आता है , उसका नाम है वैचारिक अनुनाद या रिजोनेन्स । प्राय: दो या अधिक व्यक्तियों के अपूर्ण विचार मिलकर एक पूर्ण और सार्थक रूप धारण कर लेते हैं ; या दो या अधिक व्यक्ति मिलकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जो अकेले कभी संभव न होता । इसको चाहें तो आप सगति ( एक साथ उठना , बैठना या गति ) का प्रभाव मानें या संहति ( मास , एकता या एसोसिएशन ) का प्रभाव ।

संगति के नकारात्मक प्रभाव का नाम कुसंगति है । इससे सदा सचेत और सावधान रहना चाहिये । गेहूँ के साथ घुन का पिसना या रावण के पडोस मे बसने से समुद्र की महिमा घटना इसके कुछ उदाहरण हैं ।

सारतः यह कहना पर्याप्त होगा कि संगति का प्रभाव असंदिग्ध है , केवल उसकी मात्रा कम या अधिक अथवा धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है । पण्डित वह है जो संगति के प्रभाव को अधिकाधिक अर्थपूर्ण बनाने की कला जानता है ।

1 comment:

मिर्ची सेठ said...

बहुत बढ़िया अनुनाद जी। संजाल की सत्संग के बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था। एक नए पहलू की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। यहाँ भी सिक्के दोनों पहलू हैं। कुसंग व सत्संग दोनो संभव हैं। अब आप किस तरफ जाते हैं यह निर्भर करता है।