इमर्सन को अमेरिका मे स्वतन्त्र चिन्तन का सबसे महान उपासक माना जाता है | " सेल्फ रिलायंस " नामक उनका निबन्ध स्वन्तन्त्र-चिन्तन की परिभाषा करता है और जमकर उसकी वकालत करता है |
सौभाग्य से स्वतन्त्र-चिन्तन की हमारी परम्परा भी बहुत उज्ज्वल हुआ करती थी | स्वतन्त्र-चिन्तन की हमारी परम्परा अत्यन्त प्राचीन है | भागवतकार ने तो स्वतन्त्र चिन्तन को गुरू से भी गुरुतर स्थान दिया है :
आत्मनो गुरुः आत्मैव पुरुषस्य विशेषतः |
यत प्रत्यक्षानुमानाभ्याम श्रेयसवनुबिन्दते ||
( आप ही स्वयं अपने गुरू हैं | क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है | )
क़िन्तु मध्य काल और अंग्रेजी काल के अंन्धकार युग में इसको ग्रहण लग गया , जो अब धीरे-धीरे छट रहा है |
विचार स्वातन्त्रय के कारण ही हमारी बहुमुखी प्रगति हुई थी | अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग इतने ग्रन्थ लिखे गये कि सबको गिनाने मे ही एक ग्रन्थ बन जाय | साहित्य , व्याकरण , नाटक से लेकर सेक्स मेडिसिन , इंजीनीयरिंग , ध्यान आदि अनेकानेक विषयों पर पुस्तकें मिल जायेंगी |
आँख मूदकर दूसरे की नकल करना , दूसरों से डरकर या बिना कारण सहमत होना ( दूसरों की हाँ में हाँ मिलाना ) , मेंटल लेजिनेस , आत्मविश्वास की कमी , आत्महीनता आदि सब के सब स्वतन्त्र -चिन्तन के अभाव को ही दर्शाते हैं | यही मनसिक दासता दूसरे प्रकार की दासताऒ के लिये आधार का कर्य करती है |
स्वतन्त्र-चिन्तन की परंपरा को पुनः जीवित करने की जिम्मेदारी हमारी शिक्षा-प्रणाली के कन्धों पर डालनी होगी | इसी के बल पर गौरवशाली भारत का सपना पूरा होगा |
4 comments:
अनुनाद भाई, यह टैम्पलेट बहुत अच्छा लग रहा है, प्रकृति के बहुत करीब
लेख पर टिप्पणी, बाद मे करूंगा.
जल्दीबाजी में पहलका टम्पलेट_वा अन्तर्धान हो गया | ए कारन से नया बनाया हूं | आप प्रकृति-पुजारी हैं तो आप को तो अच्छा लगबे करेगा |
अनुनाद
बन्धुवर, स्वतंत्र चिन्तन करना सबसे उपयुक्त है और अच्छा भी स्वस्थ सामाजिक विकास के लिये, पर भारत में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। क्या आउटसोर्सिंग के युग में लोग ऐसा कर सकेंगे?
जब पूरे विश्व की शिक्षा प्रणाली पश्चिमी माडल को अपनाने के लिये मुह बाये खड़ी है तो ऐसे में स्वतंत्र चिंतन का भारत और कुछ अन्य जगहों पर जीवित होना बड़ी बात है लेकिना आप शायद ठीक कह रहे हैं अंधकार छटेगा अवश्य।
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