23 February, 2005

अब नीके दिन आइहैं ..

इतिहास करवट बदल रहा है . भारत के दिन फिर रहे हैं . चहुँ ओर से शुभ संकेत मिलने लगे हैं . अभी - अभी निउ साइंटिस्ट ने खबर दी है कि भारत अगली ज्ञान की महाशक्ति ( विश्व गुरु ? ) बनने जा रहा है .

रिपोर्ट पठनीय है , परन्तु रिपोर्ट मे जगह - जगह ( भारतीय ) विरोधाभासों का उल्लेख किया गया है जो बहुतों को निरुत्साहित कर सकती है . लेखकारों की नीयत पर मुझे जरा भी शक नही है , पर उनका इतिहास का ज्ञान कुछ कमजोर लग रहा है .
वे शायद भूल गये है कि ब्रिटिश औद्योगिक क्रन्ति के समय जब ब्रिटेन को ' संसार का वर्कशाप ' कहा जाता था , बहुत सारे लोग दो जून की रोटी के लिये तरसते थे ( माइकल फैराडे , भी ) ; गन्दी बस्तियों की भरमार थी ; प्रदूषण का बोलबाला था ; जिन घरों में पशु रहना पसन्द नही करेंगे , बहुत से ब्रिटिश उनमे रहने के लिये मजबूर थे ; और लंकाशायर , जिसको पृथ्वी पर साक्षात नरक का दर्जा हासिल था , औद्योगिक क्रान्ति का केन्द्र बन गया .इसलिए हमको तो पूरा विश्वास है, जब नीके दिन आइहैं , बनत न लगिहैं देर .

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