11 July, 2008

क्या अंग्रेजी नही मरेगी?

ब्रिटिश साम्राज्य ने गुलाम बनाए देशों पर अंग्रेजी लादकर उसे फैलाने में मदद कीब्रिटेन का प्रभुत्व समाप्त होते ही दुनिया का अमेरिकी आर्थिक एवं सैनिक प्रभुत्व से सामना पडाइसके कारण विश्व में अंग्रेजी को फलने-फूलने का दोबारा मौका मिल गया। पूर्व में ब्रिटेन द्वारा गुलाम बनाये गए देश अब भी अंग्रेजी से पीछा नहीं छुडा पा रहे हैं

अंग्रेजी के भविष्य को लेकर कई विचारकों ने भविष्यवाणियां की हैं जिनके निष्कर्ष अलग-अलग हैं। किसी भाषा के तीव्र प्रसार के पीछे उसका आर्थिक एवं सामाजिक महत्व प्रमुख कारण होता है। कई विचारकों का मानना है की अंगरेजी की भांति ही कई भाषाएँ प्रतुत्व में आयीं और युद्ध, आर्थिक कारण, तकनीकी परिवर्तन, सामाजिक क्रान्ति आदि के चलते उनका दबदबा समाप्त हो गया वे ख़ुद ही मरणासन्न हो गयींअँग्रेजी का भी यही हाल होगाइसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

) भाषायी एवं सांस्कृतिक गुलामी के विरुद्ध चेतना का विकास

)
अमेरिकी आर्थिक एवं सामरिक दबदबा कम होना

)
चीन का उदय

४) हिन्दी, स्पैनिश, अरबी आदि बोलने वालों की संख्या का बढ़ना

५)
अँग्रेजी बोलने वाले देशों की जनसंख्या में कमी

६)
विश्व में शिक्षा का प्रसार

७)
यूनिकोड का प्रादुर्भाव

८)
मशीन अनुवाद का पदार्पण

९)
विश्व की अधिकाँश भाषाओं में विकिपीडिया का आरम्भ

१०) इंटरनेट के कारण ज्ञान की सुलभता एवं आसानी से शिक्षाप्रद सामग्री का विकास

११) नयी प्रौद्योगिकी
एवं तकनीकी शिक्षा का विकास


उन्नीसवीं शताब्दी से ही यह प्रोपेगैंडा किये जा रहा है की अँग्रेजी विश्व भाषा होने जा रही हैयह अभी तक नहीं हो पाया है अंतरजाल पर भी अंगरेजी के कंटेंट का प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा हैश्री डेविड ग्रैदोल का मानना है की विश्व भाषा के रूप में अंगरेजी अपने शीर्ष पर पहुँच चुकी है और अब उसके पतन के दिन आरम्भ हो रहे हैं, वैसे ही जैसे बुझने के पहले लौ तेज हो जाती है!


सन्दर्भ :

9 comments:

Unknown said...

बिलायत और अमेरिका की सरकारे अंग्रेजी को फैलाने के लिए सुनियोजित रुप से काफी धन खर्च करते है । लेकिन भारत सरकार भारत की प्रमुख सम्पर्क भाषा हिन्दी के विकास के प्रति पुरी तरह से उदासिन है । कागजी आकडो पर जो हिन्दी के लिए खर्च हो रहा है वह उपलब्धीमुलक नही है । इन परिस्थितीयो मे आने वाले समय अंग्रेजी के पौ बारह और हिन्दी का बंटाधार होना निश्चित दिख रहा है । - उमेश (नेपाल)

अनुनाद सिंह said...

उमेश जी,

केवल बहुत ज्यादा पैसा ही नहीं खर्च करती हैं बल्कि उन्होने इसके लिये एक बहुत बड़ा प्रोपेगैन्डा मशीनरी भी बना रखी है जो पूरे विश्व में गुप्त रूप से कुशलतापूर्वक तैयार किये गये लेख प्लान्ट करने का काम करती हैं, सेमिनार देते हैं, फ़र्जी विज्ञापन निकालते हैं और बहुत कुछ करते हैं।


लेकिन स्थिति बदल के रहेगी; समय सबको सीधा कर देता है।

आनंद said...

अनुनाद जी, अंग्रेज़ी भाषा में प्रचार के लिए उनकी सरकारें कौन-कौन से प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष तरीक़े अपनाती हैं? कृपया इस पर विस्‍तार से प्रकाश डालें, ताकि हम लोगों का ज्ञानवर्धन हो, और साथ ही हम जाने-अनजाने इन उपायों के मोहरे न बनें।
- आनंद

दिनेशराय द्विवेदी said...

अंग्रेजी का दबदबा खत्म होने का प्रमुख कारक आप द्वारा प्रदर्शित दूसरा कारण होगा। अन्य कारक भी मदद करेंगे।

Gyan Dutt Pandey said...

जो भाषा जीविकोपार्जन के तरीकों से जुड़ी होगी और उनके नये आयाम बनायेगी, वह जियेगी और पनपेगी।
दुख है कि हिन्दी वह नहीं कर रही। चीनी भाषा कर रही है - पता नहीं।

अनुनाद सिंह said...
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अनुनाद सिंह said...

ज्ञानदत्त जी,

आपकी बात सही है। किन्तु अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा में यह क्षमता नहीं है कि वह स्वयं जीविकोपार्जन (रोजी-रोटी) से अपने को जोड़ सके। यह काम तो उस भाषा के बोलने वालों एवं उनकी सरकारों का है; उस सरकार की भाषा-नीति का है। राजाश्रय के बिना कोई भी भाषा रोजी-रोटी का साधन नहीं बन सकती। आज की स्थिति में जब तक लोग इसके लिये सरकार पर दबाव नहीं बनायेंगे, सरकार भी यह कार्य क्यों करेगी - उसे तो केवल वोट की चिन्ता रहती है।

संजय बेंगाणी said...

नई संचार तकनीक व मशीनी अनुवाद, अंग्रेजी पर अंकुश लगाएंगे.

अनुनाद सिंह said...

धन्यवाद, संजय भाई !

वस्तुत: आपकी टिप्पणी मिलने के बाद मुझे एक शब्द मिल गया - 'अंकुश' । मैं इसी की तलाश में था। मुझे इस पोस्ट का शीर्षक देना था "क्या कभी अंग्रेजी पर अंकुश लग पायेगा?"