जब सब तरफ से शुभ समाचार आ रहे हों तो उच्चतम न्यायालय कैसे पीछे रह सकता है ? भारत की गन्दी राजनीतिक व्यवस्था इस देश को आगे धकेलने के बजाय पीछे खीचने की हर कोशिश कर रही है । किसी देश की विकास-यात्रा मे उस देश के संविधान तथा अन्य नियम-कायदों का भी विशेष योगदान होता है । किन्तु वर्तमान परिस्थितियों मे हमारा संविधान स्वयं पंगु नजर आ रहा है । आये दिन आने वाली व्यवस्था सम्बंधी समस्याओं का उसमे कोई कारगर समाधान नही है । झारखन्ड की वर्तमान समस्या हमारे संविधान के अव्यावहारिक हो जाने की समस्या है ।
समय और परिस्थितियों के अनुकूल अपने को न बदल पाने के कारण बहुत से धर्म ग्रन्थों की जो (दुर)गति हो गयी है , वह इस संविधान की न होने पाये । इसके पवित्र होने का पाखन्ड न किया जाय । इसको जीवन्त बनाये रखा जाय ।
आज हम डिजिटल युग मे जी रहे हैं । इस संविधान को इतना कारगर बनाया जा सकता है कि वैधानिक समस्यायों का वस्तुनिष्ठ (आब्जेक्टिव) हल दे सके ताकि किसी के विवेक/अविवेक का सहारा न लेना पडे ।
राम करे कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय एक नये आन्दोलन को जन्म दे जो उपरोक्त दिशा मे अग्रसर हो ।
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