19 July, 2008

भाषा-विविधता के लिए गूगल का योगदान

गूगल अब विभिन्न भाषाओं के १५०० से अधिक उत्पाद तक बना चुका है यह गूगल की लोकप्रियता का जीवंत प्रमाण तो है ही , यूनिकोड की बढी हुई उपयोगिता को भी सिद्ध करने के लिए काफी है।


हिन्दी को भी गूगल का योगदान कम नहीं है। गूगल मेल हिन्दी में है; गूगल ट्रांसलिटरेशन टूल की सहायता से रोमन-कुंजीपटल का उपयोग कारने वाले भी धड़ल्ले से हिन्दी लिख रहे हैं; गूगल अनुवादक टूल से विश्व की अनेक प्रमुख भाषाओं से सीधे हिन्दी में अनुवाद किये जा सकता है।

अंग्रेजी में गूगल के आधिकारिक चिट्ठे पर यह रपट पढिये :


Hitting 40 languages

11 July, 2008

क्या अंग्रेजी नही मरेगी?

ब्रिटिश साम्राज्य ने गुलाम बनाए देशों पर अंग्रेजी लादकर उसे फैलाने में मदद कीब्रिटेन का प्रभुत्व समाप्त होते ही दुनिया का अमेरिकी आर्थिक एवं सैनिक प्रभुत्व से सामना पडाइसके कारण विश्व में अंग्रेजी को फलने-फूलने का दोबारा मौका मिल गया। पूर्व में ब्रिटेन द्वारा गुलाम बनाये गए देश अब भी अंग्रेजी से पीछा नहीं छुडा पा रहे हैं

अंग्रेजी के भविष्य को लेकर कई विचारकों ने भविष्यवाणियां की हैं जिनके निष्कर्ष अलग-अलग हैं। किसी भाषा के तीव्र प्रसार के पीछे उसका आर्थिक एवं सामाजिक महत्व प्रमुख कारण होता है। कई विचारकों का मानना है की अंगरेजी की भांति ही कई भाषाएँ प्रतुत्व में आयीं और युद्ध, आर्थिक कारण, तकनीकी परिवर्तन, सामाजिक क्रान्ति आदि के चलते उनका दबदबा समाप्त हो गया वे ख़ुद ही मरणासन्न हो गयींअँग्रेजी का भी यही हाल होगाइसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

) भाषायी एवं सांस्कृतिक गुलामी के विरुद्ध चेतना का विकास

)
अमेरिकी आर्थिक एवं सामरिक दबदबा कम होना

)
चीन का उदय

४) हिन्दी, स्पैनिश, अरबी आदि बोलने वालों की संख्या का बढ़ना

५)
अँग्रेजी बोलने वाले देशों की जनसंख्या में कमी

६)
विश्व में शिक्षा का प्रसार

७)
यूनिकोड का प्रादुर्भाव

८)
मशीन अनुवाद का पदार्पण

९)
विश्व की अधिकाँश भाषाओं में विकिपीडिया का आरम्भ

१०) इंटरनेट के कारण ज्ञान की सुलभता एवं आसानी से शिक्षाप्रद सामग्री का विकास

११) नयी प्रौद्योगिकी
एवं तकनीकी शिक्षा का विकास


उन्नीसवीं शताब्दी से ही यह प्रोपेगैंडा किये जा रहा है की अँग्रेजी विश्व भाषा होने जा रही हैयह अभी तक नहीं हो पाया है अंतरजाल पर भी अंगरेजी के कंटेंट का प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा हैश्री डेविड ग्रैदोल का मानना है की विश्व भाषा के रूप में अंगरेजी अपने शीर्ष पर पहुँच चुकी है और अब उसके पतन के दिन आरम्भ हो रहे हैं, वैसे ही जैसे बुझने के पहले लौ तेज हो जाती है!


सन्दर्भ :