26 August, 2007

गुनहुँ लिखहुँ सुनावहुँ सोई, जा बिधि बिश्व हिन्दीमय होई

कल नेट पर विचरण करते हुए मैं 'इन्टरनेट आर्काइव ' पर जा पहुंचा । वहाँ हिंदी का जो दृश्य देखा , वह बहुत उत्साहजनक है। ऐसा लगा जैसे हिंदी में कंटेंट का सृजन अब कोई मुद्दा ही नही रहा। किसी ने 'सामान्य हिन्दी' अपलोड कर रखा है तो किसी ने 'हिन्दी शिक्षण' । ये दोनों ही पुस्तके हिंदी के समग्र ज्ञान के लिए बहुत उपयोगी लगीं । किसी भाई ने तो समूची 'रश्मिरथी' को ही आडियो प्रारूप में बदलकर वहाँ डाल रखा है।

मेरे खयाल से अब हिंदी में कंटेंट सृजन के लिए 'टेक्स्ट' टाइप करने चक्कर में पडना अनावश्यक है; क्योंकि अब जगह की कमी का रोना नहीं है; किसी फाइल को अंतरजाल पर शीघ्र लोड कराने का रोना भी उतना नहीं है; किसी बड़ी से बड़ी पुस्तक को अपेक्षाकृत बहुत कम समय में स्कैन किया जा सकता है; स्कैनर न हो तो अपने डिजिटल कैमरे से ही काम चला सकते हैं; पढ़कर आडियो रेकार्डर को सुनाना भी टाईप करने से आसान काम है। सबसे बड़ी बात है की आज नहीं तो कल हिंदी के लिए अच्छे 'टेक्स्ट टू स्पीच' , 'ओ सी आर' एवं 'स्पीच टू टेक्स्ट' आदि औजार आने ही वाले हैं। तब इन्हे मनमाने प्रारूप में उपलब्ध होते देर नही लगेगी.

उधर भारत का डिजिटल पुस्तकालय भी हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की पुस्तकों को स्कैन करके नेट पर डालने में लगा हुआ है। हिंदी में दस हजार से अधिक पुस्तकें अर्ध या पूर्ण रूप से स्कैन की जा चुकीं हैं। आपके पास भी हिब्दी की कोई अच्छी पुस्तक हो, जो कापीराईट से मुक्त हो तो उसे नेट अपर अवश्य डालिये। आप ख़ुद सोचिये की उसे हिन्दी विकिसोर्स पर डालना चाहिए, 'इन्टरनेट आर्काइव' पर डालना चाहिए या ई-स्निप्स पर, या कहीं और ।

लेकिन पुरानी पुस्तकों आदि को नेट पर डालने के अलावा हिन्दी में नयी कंटेंट भी रची जानी चाहिए जो आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप हो, प्रगत विचारों से भारी हुई हो, रूचिकर हो, और लाभकर हो - अर्थात 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' की कसौटी पर खरी उतरती हो।

20 August, 2007

सभी ओर हरियाली हो, भूमि न कोई खाली हो

गायत्री परिवार गुरु पूर्णिमा से दीपावली तक हरितिमा संवर्धन अभियान चला रहा हैइसके लिये उन्होने बहुत हीसुन्दर नारे रचे हैंवृक्षों के संरक्षन और संवर्धन के सम्बन्ध में जन-चेतना फैलाना आज की महती अवश्यकता हैवृक्ष क्रुद्ध प्रकृति को शान्त कर सकते हैं तथा सुख-सौभाग्य से जन-जीवन भर सकते हैंवस्तुत: वृक्ष हमारापालन-पोषन करने वाले विष्णु है; प्रदूषण रूपी हलाहल का पान करने वाले शिव हैं


वृक्ष धरा की शान हैं
करते जन-कल्याण हैं।।

वृक्ष हमारे रक्षक हैं
हम क्यों उनके भक्षक हैं।।

बच्चा एक वृक्ष अनेक
वादा और इरादा नेक।।

प्रकृति कोप से बचना है
वृक्षारोपण करना है।।

वृक्ष अनेक लगायेंगे
भू का कर्ज चुकायेंगे ।।

काटो नहीं, लगाओ पाँच
नहीं प्रकृति पर आये आँच ।।

हरियाली से प्यार करो
उससे सारा क्षेत्र भरो ।।

चलो लगायें वृक्ष हजार
नहीं वनों का हो संहार।।

हरियाली से भूमि भरें
विविध प्रदूषण दूर करें।।

वन हैं जीवन के आधार
करें प्रदूषण का उपचार।।

बच्चे चाहें तुम्हे सतायें
वृक्ष सुनिश्चित पुण्य दिलायें।।

वृक्ष पुत्र से अच्छे हैं
पुण्य कमाऊ सच्चे हैं।।

वृक्षों को भी पुत्र बनाओ
अपना सुख सौभाग्य बढ़ाओ।।

11 August, 2007

विद्यार्जन के नवीनतम साधन और तकनीकें


परम्परागत रूप से विद्यार्जन के दो प्रमुख तरीके रहे हैं - कक्षा में बैठकर शिक्षक का व्याख्यान सुनना तथा पुस्तक से स्वाध्याय द्वारा । दोनो ही विधियों से शिक्षार्जन में बहुत सी अच्छाइयाँ हैं किन्तु उनकी कुछ उल्लेखनीय कमियाँ भी रही हैं। उदाहरण के लिये शिक्षक कक्षा में किसी चीज का दो-डाइमेंशन वाला चित्र तो येन-केन-प्रकारेण बना सकता है, किन्तु त्रि-बिमीय (three-dimensional) चित्र बनाना बहुत कठिन रहता है। पुस्तकों में फोटो और चित्र तो दिये जा सकते हैं किन्तु उनको 'एनिमेट' नहीं किया जा सकता; चाहकर भी उन्हें अलग-अलग कोण से घुमा-फिराकर नही देखा जा सकता। किसी चलती बस में पुस्तक पढ़ना दुस्कर है। साथ में आँखों पर भी जोर पड़ता है।



शिक्षा के परम्परागत साधनों की कमियों को पूरा करने के लिये अब कई नये साधन आ गये हैं। इनमें दो प्रमुख हैं - शैक्षणिक विडियो (educational video) और शैक्षणिक आडियो । कहने को तो इसमें भी कुछ नया नही है। किन्तु नया यह है कि आज की तारीख में शैक्षिक विडियो और आडियो तथा शैक्षिक पाडकास्टिंग की भरमार आ गयी है; साथ ही इन फाइलों को चलाने वाले हार्डवेयर (एम. पी.-३ प्लेयर आदि) भी जनसामान्य के लिये सर्वसुलभ और सस्ते हो चले हैं। शैक्षणिक विडियो विशेष रूप से किसी विधा की ट्रेनिंग (vocational training) देने के लिये अति उपयोगी है। इसी तरह आडियो प्रारूप में उपलब्ध सामग्री को चलते-फिरते और बिना आँखों पर जोर डाले ही 'पढ़ा' जा सकता है।


इसके अलावा सिमुलेशन (simulation) और शैक्षणिक अप्पलेट्स (applets) की भी कठिन विषयों को सीखने-सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका है, जो परम्परागत तरीके से पूर्णत: असम्भव है।


नीचे दिये जालस्थलों पर शैक्षणिक सामग्री आडियो, विडियो या पाडकास्टिंग के रूप में उपलब्ध हैं।

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Benefits of e-लीर्निंग


नेट पर पढ़न लगे मुन्ना भाई, अल्प काल सब विद्या पाई।।


09 August, 2007

देवनागरी लिपि अपनायें


देवनागरी लिपि वैज्ञानिक, हम इसको अपनायें।

भाषाएँ अनेक भारत में,
जिनकी लिपियाँ न्यारी।
देवनागरी लिपि सर्वोत्तम,
लगती कितनी प्यारी ।।

हम सब इसको प्रतिष्ठित करने का अभियान चलायें।
देवनागरी लिपि प्रतिष्ठित, हम इसको अपनाएँ।।

स्वर, व्यंजन परिमार्जित प्रांजल,
लेखन-शैली सुन्दर ।
शब्दों का उत्तम संयोजन,
रूप विशेष मनोहर ।।

जैसा खाता लिखा उसी विधि, इसको पढ़ें-पढ़ायें ।
देवनागरी लिपि प्रतिष्ठित, हम इसको अपनाएँ।।

भारतीय भाषाएं सारी,
इसे राष्ट्र-लिपि माने।
भारतीय सब लिखें इसी में,
इसके गुण को जानें ।।

ध्वनि, वर्तनी और उच्चारण में विशेषता पायें ।
देवनागरी लिपि प्रतिष्ठित, हम इसको अपनाएँ।।

टंकण और आशुलिपि की भी,
इसमें अद्भुत क्षमता ।
संगणकों के लिये श्रेष्ठ है,
कौन कर सके समता ?

जान सकेंगे इसके द्वारा, हम समस्त भाषाएँ ।
देवनागरी लिपि प्रतिष्ठित, हम इसको अपनाएँ।।

दीर्घ-काल से हिन्दी-संस्कृत,
लिखीं इसी में जातीं
भारतीय जनता इस लिपि की,
महिमा-गरिमा गाती ।।

जन-जन में हम इसे लोक-प्रिय, करके यंत्र बनायें ।
देवनागरी लिपि प्रतिष्ठित, हम इसको अपनाएँ।।

-- विनोद कुमार पाण्देय 'विनोद'
सी-१०, सेक्टर - जे, अलीगंज, लकनऊ (उ. प्र.)


(नागरी संगम पत्रिका से साभार अनुकृत)