28 July, 2007

बिनु साधन सब सून

सभ्यता के विकास का इतिहास साधनों के विकास का इतिहास है। कम्प्यूटर और इन्टरनेट के वर्तमान युग में साफ़्टवेयर रूपी साधनों (टूल्स) की महत्ता सर्वविदित है।

मूझे किसी जालस्थल से बहुत से साधनों के संकलन की सूची मिली है। मेरा विश्वास है कि यह हम सबके लिये बहुत उपयोगी है।



PDF Toolbox : 40+ Tools to Rip, Mix and Burn PDFs

Web Design Toolbox : 50+ Tools for Web Design

30+ Plugins for Wordpress Comments

50+ Tools For Torrenting

ONLINE MEDIA GOD: 400+ Tools for Photographers, Videobloggers, Podcasters & Musicians

Online Maps: 50+ Tools and Resources

Work Together: 60+ Collaborative Tools for Groups

ONLINE PRODUCTIVITY GOD: 400+ Resources To Make You Smarter, Faster & a Demon in the Sack

30+ AJAX-Powered WordPress Plugins

70+ Tools For Job Hunting 2.0

40+ Firefox Add-ons for High Speed Blogging

20 Ways To Aggregate Your Social Networking Profiles

Online Music: 90+ Essential Music and Audio Websites

Podcasting Toolbox: 70+ Podcasting Tools and Resources

Blogging Toolbox: 120+ Resources for Bloggers

14 Personalized Homepages Compared, Feature by Feature

230+ Keyboard Shortcuts for Top Web Services

Online Photography Toolbox: 90+ Online Photography Tools and Resources

Video Toolbox: 150+ Online Video Tools and Resources

Online Productivity Toolbox: 30+ Resources to Get Things Done

The Ultimate RSS Toolbox - 120+ RSS Resources

Analytics Toolbox: 50+ Ways to Track Website Traffic

Google vs Everyone: 10 Markets Where Google Wants to Win

The Tagging Toolbox: 30+ Tagging Tools

Wiki Toolbox: 30+ Wiki टूल्स

Conversion Central: 101 Tools to Convert Video, Music, Images, PDF and More


सब कुछ करने के लिये ५००० से अधिक साधन



और अन्त में, साधनों के महत्व को प्रतिपादित करतीं कुछ सूक्तियाँ :

"Intelligence is the faculty of making artificial objects, especially tools to make tools."
-- Henri Bergson

Man is a tool-using animal. Without tools he is nothing, with tools he is all.
-- Thomas Carlyle (1795-1881) British historian and essayist.

"We shall not fail or falter; we shall not weaken or tire. Neither the sudden shock of battle nor the longdrawn trials of vigilance and exertion will wear us down. Give us the tools and we will finish the job."
-- Winston Churchhill

22 July, 2007

इ-शिक्षा सम शिक्षा नाहीं


इतिहास साक्षी है कि तकनीक के विकास ने वाणिज्य में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया। वर्तमान शताब्दी में लोगों को पिछली शताब्दियों की तुलना में बहुत अधिक सीखना पड़ेगा। भारत में भी शिक्षा दिन पर दिन महंगी होती जा रही है। अच्छी (अद्यतन) शिक्षा-सामग्री, पुस्तकालयों और अच्छे शिक्षकों की बहुत कमी है। ऐसी स्थिति में एलेक्ट्रानिक-शिक्षा ने शिक्षा के नये द्वार खोलकर भारत के समक्ष विश्व में ज्ञान का सिरमौर बनने का पुन: अवसर प्रदान किया है। एम.आई.टी. की अगुवाई में 'ओपेन-कोर्स' का अभियान भी उत्कृष्ट शिक्षा की दिशा में प्रभावी कदम है।




इ-शिक्षा के विभिन्न रूप:

टेक्स्ट, ध्वनि, विडियो, एनिमेशन, सिमुलेशन, स्क्रीनकास्टिंग, शैक्षिक ब्लाग, पाडकास्टिंग, आर.एस.एस., खोजी इंजन, जीवंत खोजी इंजन जैसे टेक्नोराती, सामाजिक बुकमार्किंग, इ-मेल, चर्चा-समूह, विकि, विजार्ड, प्राय: पूछे गये प्रश्न (FAQ)




पारंपरिक शिक्षा की तुलना में इ-शिक्षा के बहुत से लाभ हैं:

पाँच क : कोई भी, कभी भी, कहीं भी, किसी भी विषय का, किसी भी गति से सीख सकता है।

विद्यार्थियों का यात्रा का समय और यात्रा का खर्च बचता है।


शिक्षार्थी का सशक्तिकरण : सीखने का सम्पूर्ण नियंत्रण विद्यार्थी के हाथ में होता है। विद्यार्थी अपने ज्ञान के स्तर, अपनी रुचि, और अपनी शैक्षिक-आवश्यकता के अनुरूप सिक्षा सामग्री खुद चुनने के लिये स्वतन्त्र होता है।


सन्दर्भ के अनुरूप सहायता प्राप्त हो जाती है।

इन्टरैक्टिव : सिमुलेशन आदि को सम्मिलित कर शिक्षा को इन्टरैक्टिव बनाया जा सकता है जिससे सीखने में बहुत आसानी हो जाती है।

शिक्षा प्रदान करने के पारम्परिक तरीके (व्याख्यान, सेमिनार, ट्यूटोरियल) के अलावा ज्ञान को बोधगम्य बनाने के नये तरीके - मल्टीमिडिया, एनिमेशन, सिमुलेशन आदि

विद्यार्थियों को हाइपरलिंक की सहायता से ज्ञान के सागर में विचरण करने की स्वतन्त्रता देता है। इस प्रकार विद्यार्थी अपनी आवश्यकता की दृष्टि से यथेष्ट सिक्षा-सामग्री पर शीघ्र पहुँच जाता है।

शिक्षा-सामग्री केवल टेक्स्ट के रूप मे होने की बाध्यता नहीं होती । टेक्स्ट, चित्र, छवि, विडियो, ध्वनि, वर्चुअल रिआलिटी आदि अनेक तरीकों से शिक्षा प्रदान की जाती है।

के लिये ऐसी सामग्री बनायी जा सकती है जिसमें हर कदम बहुत विस्तार से प्रदर्शित हो - उदाहरण के लिये किसी उपकरण को रिपेयर करने की विधि विडियो तथा आडियो रूप में देना बहुत कारगर होता है।

विद्यार्थी एजुकेशनल-अप्लेट्स और सिमुलेशन प्रोग्रामों की सहायता से बहुत से प्रयोग कर सकते हैं। इससे दुर्घटना होने से बचती है; कोई सामग्री बर्बाद नहीं होती; उर्जा की बचत होती है।

विश्व-व्यापी संजाल पर उपलब्ध संसाधन अथाह हैं; इनकी सहायता से बहुत उच्च कोटि की शिक्षा-सामग्री बनायी जा सकती है।

अपने लिये उपयुक्त सीखने की शैली चुन सकता है। समझ में न आने पर कक्षा में निठल्ला बैठने जैसी स्थिति नहीं होती।

ठीक समय पर (just in time) शिक्षा

खोज की सुविधा



इतनी सारी विशेषताओं के होते हुए कोई कक्षा में बैठकर क्यों सीखे? असंख्य विषयों पर तरह-तरह की शिक्षा सामग्री अन्तरजाल पर मुफ्त में उपलब्ध है। इसलिये आप भी कहिये:

ई-शिक्षा सम शिक्षा नाहीं। अल्प काल सब शिक्षा पाहीं।।







इ-शिक्षा संदर्भ:

Electronic learning - Wikipedia, the free encyclopedia


Authentic Learning for the 21st Century - An Overview

e-Learning Site

Top 100 Open Courseware Projects

236 Open Coursewares - Take Any College Class for Free


Learning Styles Online.com - including a free inventory

Top 25 Web 2.0 Apps to Help You LEARN OEDb

Top 100 Education Blogs OEDb

Java Applets for Engineering Education

20 July, 2007

भारत के सन्दर्भ में मुक्त-स्रोत साफ़्ट्वेयर

कहते हैं कि रावण की कई आकाश छूने वाली योजनाओं में से एक थी - स्वर्ग तक सीढ़ी का निर्माण । विचार यह था कि स्वर्ग प्राप्ति के लिये किसी को कठिन परिश्रम (तप) न करना पड़े।

इस विचार में प्रबन्धन का एक बहुत बड़ा गुर छिपा हुआ है - यदि किसी बड़े, जटिल और कठिन कार्य को छोटे-छोटे भागों में बांट दिया जाय और उनको करने का सही क्रम निश्चित कर दिया जाय तो वह कार्य सरल बन जाता है।


विज्ञान और तकनीकी के पिछले एक हजार वर्ष के विकास काल में भारत गुलामी झेल रहा था। इस कारण भारत की पारंपरिक उन्मुक्त वैज्ञानिक और तकनीकी सोच को ग्रहण लगा रहा। उसका आत्मविश्वास मरणासन्न अवस्था में पहुँचा दिया गया था। किसी बहुत बड़े तकनीकी प्रोजेक्ट में सफल होने की आशा तभी की जा सकती है यदि इसके पहले इससे छोटे आकार के बहुत से प्रोजेक्ट पूरे किये गयें हों; और इसी तत्व का अभाव 'कल्चरल गैप' कहलाता है।


अब मुक्त-स्रोत साफ़्ट्वेयर की बात करते हैं। मुक्त-स्रोत साफ़्टवेयरो की अवधारणा के समर्थन में इसकी मुख्यत: निम्नलिखित अच्छाइयाँ गिनाई जाती हैं:


मुक्त-स्रोत की अवधारणा साफ़्टवेयर-प्रयोक्ता को तरहतरह की आजादी देती है(इनका मुफ़्त होना उतना महत्व नहीं रखता),


इन साफ़्टवेयरों का सोर्स-कोड सर्वसुलभ होता है,


इनको प्रदान करने के बदले कोई मूल्य नहीं लिया जाता,


इनका उपयोग स्वेच्छा से किसी भी काम के लिये किया जा सकता है,


इसे किसी अन्य व्यक्ति को देने की मनाही नहीं होती,


सोर्स-कोड की खुली उपलब्धता के कारण इसमें कोई ऐसी असुरक्षा नहीं रह सकती जो प्रयोक्ता को पता न हो,


प्रोग्राम के कार्य करने के तरीके का अध्ययन करके उसे अपनी आवश्यकता और पर्यावरण के अनुरूप ढालने की आजादी,


किसी वेंडर का बन्धुआ-प्रयोक्ता न बनने की आजादी,


कम समय में विशाल प्रोग्राम बनाने की आजादी - विशाल प्रोग्राम से आरम्भ करके विशालतर प्रोग्राम बनाने की आजादी, क्योंकि शून्य से आरम्भ नहीं करना पड़ता ,


क्रमिक विकास (evolution) आसान और स्वाभाविक है, क्रान्ति कठिन है,

मुक्त-स्रोत का 'गोंद' आज का सर्वश्रेष्ठ गोंद (glue) है,


भारत की दृष्टि से साफ़्टवेयरों के सोर्स-कोड का सर्वसुलभ होना बहुत अर्थपूर्ण है। भारत को साफ़्टवेयर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो मुक्त-स्रोत साफ़्टवेयरों के कन्धे पर चढ़कर ही यह उंचाई हासिल की जा सकती है। 'कल्चरल गैप' के श्राप से ग्रसित किसी भी देश के लिये शून्य से आरम्भ करके बड़ा साफ़्टवेयर बनाना अत्यंत कठिन है।


आज हमारे देश में लाखों की संख्या में छात्र प्रोग्रामिंग से अवगत हैं। किन्तु उनके सामने कोई बड़ा साफ़्टवेयर-निर्माण का लक्ष्य न होने के कारण उनकी योग्यता का समुचित उपयोग ही नहीं हो पाता। सीखने की दृष्टि से भी मुक्त-स्रोत सर्वोत्तम साधन हैं। वे साक्षात और जीवंत उदाहरण हैं। दर्जनों किताबें पढ़ने के बजाय किसी साफ़्टवेयर के कोड का अध्ययन करना और उसके कार्य करने का तरीका समझकर उस साफ़्टवेयर में अपनी आव्श्यकतानुसार कुछ जोड़ घटाकर काम बना लेना ज्यादा कारगर है।


07 July, 2007

अन्तरजाल पर हिंदी कैसे पसरे ?

  1. अपने मित्र को हिन्दी (देवनागरी) में मेल लिखिये। उसे आश्चर्यचकित करिये।


  2. किसी हिन्दी समझने वाले के अंगरेजी ब्लाग पर हिन्दी में टिप्पणी लिखिये।


  3. विभिन्न चरचा समूहों पर हिन्दी के कुछ अति महत्वपूर्ण साइटों के लिंक प्रेषित करके कुछ लोगों की कूपमण्डूकता खत्म कीजिये।


  4. हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादक के नाम पत्र में इण्टरनेट पर हिन्दी की स्थिति के बारे में बताइये। हिन्दी के कुछ महत्वपूर्ण साइटों की लिंक भी लिख भेजिये।


  5. अपने मित्रों को हिन्दी इंटरफेस वाला कोई अनुप्रयोग या साफ़्टवेयर चलाकर दिखाइये। उनका अज्ञान्धता मिटाइये।


  6. हिन्दी प्रेमियों के सामने एक पवित्र लक्ष्य रखा जाय - भारत में जिस प्रकार से प्रिन्ट माध्यमो में हिन्दी का वर्चस्व है, वैसी ही स्थिति अन्तरजाल पर भी निर्मित करनी है।


  7. उत्साही छात्रों को उनके प्रोजेक्ट के रूप में हिन्दी का कोई टूल विकसित करने का कार्य दीजिये। भारत में इस समय हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष इंजीनियरिंग कालेजों में भर्ती हो रही है। जरा गौर कीजिये उनके प्रोजेक्ट कितने सार्थक रहते हैं।


  8. यह कहने के बजाय कि कम्प्यूटर पर हिन्दी में काम करना सम्भव है और आसान है, किसी को हिन्दी में काम करते हुए बताइये।


  9. लोगों को ट्रान्सलिटरेशन के कांसेप्ट से अवगत कराइये। उन्हे बताइये कि हिन्दी टाइपिंग के अभ्यास के बिना भी हिन्दी में तेज गति से टाइप किया जा सकता है।


  10. लोगों को समझाइये कि हमारा कर्तव्य है कि हम दूसरे लोगों से प्राप्त और दूसरी भाषाओं में उपलब्ध जानकरी का उपभोग करें और उसके बदले में अपने लोगों के लिये उनकी भाषा में और अच्छी जानकरी की रचना करें ( इंग्लिश में लें, हिन्दी में लौटायें) । किसे भी समाज के लिये सूचना का केवल उपभोग ठीक नहीं है, सूचना और ज्ञान का सृजन (उत्पादन) करना भी जरूरी है।

05 July, 2007

सुनो साधु , धर्म-सर्वस्वम्

धर्म की कसौटी

श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रूत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत् ।।
--- महर्षि वेद व्यास

( धर्म का सर्वस्व क्या है , सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो । जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो , वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये । )



धर्म के लक्षण

मनु स्मृति में मनु कहते हैं -

धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥
( धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , स्वच्छता , इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ( अक्रोध ) )



तुलसी का धर्म-रथ

रामचरितमानस के लंका काण्ड में गोस्वामी तुलसीदास ने धर्म का रथ के रूप में बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है । प्रसंग है - युद्ध में रावण रथ पर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर आता है ; राम बिना रथ के ही हैं ..

रावण रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।

सौरज धीरज तेहि रथ चाका । सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ।।
बल बिबेक दम परहित घोरे । छमा कृपा समता रजु जोरे ।।
ईस भजनु सारथी सुजाना । बिरति चर्म संतोष कृपाना ।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा । बर बिग्यान कठिन कोदंडा ।।
अमल अचल मन त्रोन समाना । सम जम नियम सिलीमुख नाना ।।
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा । एहि सम बिजय उपाय न दूजा ।।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें । जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ।।

महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर ।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर ।।




सर्वश्रेष्ठ धर्म ( परम् धर्म)

इसके अलावा शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ धर्म को लेकर बहुत चर्चा हुई है । कोई अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म मानता है तो कोई परोपकार को; कोई सत्य को पर्म् धर्म कहता है तो कोई आचार को ।

अहिंसा परमो धर्म: ।
परहित सरिस धरम नहिं भाई ।
-- तुलसीदास

धरमु न दूसर सत्य समाना ।
आगम निगम पुरान बखाना ।।
-- तुलसीदास

नहि सत्यात् परो धर्म: त्रिषु लोकेषु विद्यते।

आचार: परमो धर्म:।




समाजिक सुव्यवस्था का साधन - धर्म

'राज्य' की निर्मिति के सम्बन्ध में महाभारत के शान्तिपर्व में सार्थक चर्चा आयी है । महाराज युधिष्ठिर, शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह से पूछते हैं कि ''पितामह, यह तो बताइये कि राजा, राज्य कैसे निर्माण हुये ?'' भीष्म पितामह का उत्तार प्रसिध्द है । उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा था कि जब कोई राजा नहीं था; राज्य नहीं था; दण्ड नहीं था; दण्ड देने की कोई रचना भी नहीं थी । सारी जनता धर्म के द्वारा ही एक दूसरे की रक्षा कर लेती थी

न वै राज्यं न राजाऽसीत्, न दण्डो न च दाण्डिक :।
धर्मेणैव प्रजा: सर्वा, रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥




साधु/सज्जन को धर्म द्वारा अभय की घोषणा (वादा)

धर्मो रक्षति रक्षित: ।
(धर्म की रक्षा करने पर धर्म भी मनुष्य की रक्षा करता है)

यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
परित्राणाय साधुनां, विनाशाय च दुस्कृताम् ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे ।।




धर्म और मजहब में बहुत अन्तर है

जैसे धर्मयुद्ध जिहाद नहीं है वैसे ही धर्म और मजहब बिलकुल अलग-अलग कांसेप्ट हैं; यहां तक कि कभी-कभी मजहब धर्म का बिलोम भी बन जाता है ।

धर्म किसी कर्मकाण्ड, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा, लकीर-की-फकीरी, रूढ़िवाद आदि का नाम नहीं है । यहां तक कि धर्म ईश्वर से भी स्वतन्त्र कांसेप्ट है । धर्म की धारणा नितान्त सेक्युलर धारणा है ।

01 July, 2007

अमिताभ और हिन्दी कम्प्यूटिंग

कुछ भी हो यह जानकर बहुत खुशी हुई कि भारतीयों के दिलों पर राज करने वाले अपने अमित भैया हिन्दी कम्प्यूूटिंग की वर्तमान स्थिति पर नजर रखे हुए हैं

नवभारत टाइम्स की ५७वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने व्याख्यान में अमिताभ ने कहा कि आजकल ऐसा साफ़्टवेयर उपलब्ध है जिसके सहारे रोमन में टाइप करने से ही देवनागरी में लिख देता हैउनका इशारा निश्चित ही लिप्यंतरण पर आधारित ध्वन्यात्मक देवनागरी सम्पादित्रों की तरफ थाउनका यह कहना कि रोमन के सहारे देवनागरी लिखने से देवनागरी को चोट पहुंच रही है, काफी हद तक ठीक हैकिन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिये कि जो अपने पैर पर खड़ा होकर नहीं चल सकता उसे बैशाखी के सहारे चलाने के अच्छे परिणाम ही आते हैं - बैशाखी आदमी को स्थायी रूप से अचल बनने से बचा लेती हैलेकिन जिनके पैर बिलकुल ठीक हैं उन्हे बैसाखी देना निश्चय ही उन्हें अपंग बनाने की दिशा में आगे बढ़ाना है

कम्प्यूटर पर देवनागरी लिखने के लिये सही तरीका चुनने की नीति यही होनी चाहिये कि जो लोग केवल रोमन की-बोर्ड में अभ्यस्त हैं वे देवनागरी लिखने के लिये 'ट्रान्सलिटरेशन पर आधारित ध्वन्यात्मक टूल' प्रयोग करें जबकि उन लोगों के लिये जिनके हाथ अभी 'रोमन-पैरालिसिस' के शिकार नहीं हुए हैं वे देवनागरी के लिये बनाये गये विशिष्ट कुंजी-पटल (जैसे इन्स्क्रिप्ट) का ही इस्तेमाल करेंमार्क ट्वेन की इस सूक्ति में यही समाधान छिपा हुआ है:

"Blessed are the flexible, for they shall not be bent out of shape।"
( वे धन्य हैं जो लचीले हैं, क्योंकि वे बेढंग रूप में नहीं मोड़े जायेगें। )