17 December, 2006

हे जगन्नाथ ! इनको सद्बुद्धि दें

ताकि ये समझ सकें कि:

(1) किसी (तथाकथित) शूद्र के स्पर्श से भगवान अपवित्र नहीं हो जाते। यदि ऐसा होता तो उनको पतित-पावन क्यों कहते?

(2) अस्पृश्यता हिन्दू-धर्म के उपर एक कलंक है।

(3) अस्पृश्यता हिन्दू समाज के एकता और सबलता के लिये सबसे बड़ा खतरा है। इसी के बहाने लालच, पाखण्ड और धोखा देकर अधिकांश हिन्दुओं का मत-परिवर्तन कराया जाता है।

(4) ये कुंए के मेढ़क पुजारी स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गाँधी आदि के विचार पढ़ने का सौभाग्या पांये और समझ सकें कि उनके इस तरह के गलत व्यवहार के कारण ही हिन्दु समाज को पद-दलित होना पड़ा।

(5) धर्म किसी पाखण्ड का नाम नही है बल्कि देश, काल और नैतिकता की कसौटी पर जो आचरण खरा उतरता है उसे धरना या धारण करना ही (हिन्दू) धर्म है।

10 December, 2006

आइये, न्यायिक सक्रियता का स्वागत करें

हाल के दिनों में विभिन्न न्यायालयों ने कुछ ऐसे फैसले दिये हैं जो भारत के विकास को गति प्रदान करेंगे। इस समय जब भारत के त्वरित विकास की आशा सर्वत्र बलवती है, न्यायालयों में लम्बित मामालों की संख्या चिन्ता का कारण बनी हुई थी। सुव्यवस्था के अभाव में किसी भी देश या समाज के विकास की कल्पना ही नही की जा सकती। त्वरित न्याय मिलते रहने पर लोगों की कानून और व्यवस्था में आस्था बनी रहती है जो लोगों को अच्छे और महान कार्य करने के विचारों को प्रज्वलित करने के लिये आक्सीजन का काम करती है।

किन्तु भ्रष्ट तत्व न्यायालयों के इन निर्णयों को पचा नहीं पा रहे हैं। इन तत्वों द्वारा, या इनके चमचों द्वारा, तरह-तरह के छद्म तरीकों से (अप्रत्यक्ष रूप से) इन निर्णयों का विरोध किया जा रहा है। इधर राजनीतिज्ञ दबे मुँह न्यायालय की अति-सक्रियता की बात कहने लगे हैं, तो उधर बालीवुड हस्ताक्षर अभियान और बहिस्कार की बात कर रहा है। बालीवुड और मुम्बई के अन्डर्वर्ड से सांठगांठ जगजाहिर है। भारत में राजनीतिबाजों का भ्रष्ट और आपराधिक चरित्र सर्वविदित है।

यदि भारतीय न्यायपालिका और त्वरित निर्णय देने लगे तो भारत का और भी कल्याण हो। भारत के स्वर्णिम भविष्य के दर्शनार्थियों को न्यायालयों की सक्रियता का हृदय से स्वागत करना चाहिये।