17 December, 2006

हे जगन्नाथ ! इनको सद्बुद्धि दें

ताकि ये समझ सकें कि:

(1) किसी (तथाकथित) शूद्र के स्पर्श से भगवान अपवित्र नहीं हो जाते। यदि ऐसा होता तो उनको पतित-पावन क्यों कहते?

(2) अस्पृश्यता हिन्दू-धर्म के उपर एक कलंक है।

(3) अस्पृश्यता हिन्दू समाज के एकता और सबलता के लिये सबसे बड़ा खतरा है। इसी के बहाने लालच, पाखण्ड और धोखा देकर अधिकांश हिन्दुओं का मत-परिवर्तन कराया जाता है।

(4) ये कुंए के मेढ़क पुजारी स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गाँधी आदि के विचार पढ़ने का सौभाग्या पांये और समझ सकें कि उनके इस तरह के गलत व्यवहार के कारण ही हिन्दु समाज को पद-दलित होना पड़ा।

(5) धर्म किसी पाखण्ड का नाम नही है बल्कि देश, काल और नैतिकता की कसौटी पर जो आचरण खरा उतरता है उसे धरना या धारण करना ही (हिन्दू) धर्म है।

3 comments:

संजय बेंगाणी said...

भगवान सद्बुद्धी दे तो ठीक अन्यथा पिछवाड़े डंडा फटकारो. इन बदअक्ल लोगो ने हिन्दू धर्म व भारत देश का सत्यानाश करके रख दिया है.

विशाल सिंह said...

जगन्नाथ की इस धरती की दुर्दशा इन्हीं कूपमण्डुकों के कारण ही तो हुई है। पता नहीं कब सद्बुद्धि आयेगी..

विजय said...

ये धर्म के ठेकेदार यह क्यों नहीं जानना चाहते कि जिस राम को वे शरणागत वत्सल मानते हैं, उनके शरण में जाने पर अश्पृश्य पवित्र होगा या राम ही अपवित्र... तो फिर शक्तिशाली कौन है राम या ये पतितजन....राम को इन्होने शक्तिविहीन बना दिया है...
इन्हीं लोगों की बदौलत तो हिन्दू धर्म अपने अधोगति के चरम पर है...