03 October, 2005

संजाल पर हिन्दी का सर्वांगीण विकास : हिन्दी-संजाल द्वितीय


सर्वांगीण शब्द से ही शुरु करते हैं । सर्वांगीण विकास का अर्थ है सभी "अंगों का विकास" । ऐसा न होना अपंगता कहलाता है ।

इस समय संजाल पर हिन्दी में जो कुछ लिखा जा रहा है , अधिकांशतः साहित्य से संबन्धित है । उसमें भी साहित्य की दो-तीन विधाओं पर ही ज्यादा जोर है , जैसे कविता । और कविता में भी अधिकांश लोग श्रृंगार रस की "प्रेम-कविता" या "रूप-सौन्दर्य" पर ही अधिक जोर मारते देखे जाते हैं । यह प्रवृति हिन्दी को एकांगी बना रही है ।

यह बात हमेशा ध्यान में रखने की जरूरत है कि भाषा का सम्बन्ध केवल साहित्य या कविता से नहीं है । इसका सम्बन्ध तो आदमी के पूरे जीवन से है । भाषा अपने विभिन्न रूपों मे सम्पूर्ण मानवीय ज्ञान की वाहिका है । इसलिये हमारा लक्ष्य "हिन्दी को भी सारे ज्ञान की संवाहिका बनाना" ही होना चाहिये ।

हिन्दी-संजाल के सर्वांगीण विकास के लिये अन्य विषयों के साथ निम्नलिखित विषयों पर भी लिखना जरूरी है :

साहित्य एवं कला
आर्थिक विषय (बाजार , इन्वेस्टमेन्ट , टैक्स , रीयल-स्टेट आदि)
व्यापार और व्यवसाय
उद्यमिता विकास
स्व-रोजगार विषयक जानकारी
वैज्ञानिक विषय
तकनीकी विषय
राजनीति , कूटनीति एवं अन्तर्राष्ट्रीय संबन्ध
प्रबन्धन विषयक जानकारियाँ
व्यक्तित्व विकास और नेतृत्व
कानूनी सहायता , विधिक जानकारी
शिक्षा सहायता
स्वास्थ्य एवं रोग-निदान
योग , प्राणायाम
प्राकृतिक चिकित्सा , अपक्वाहार
शरीर-सौन्दर्य
आधुनिक औजारों का रखाव और सुधार ( जैसे मोटरकार रिपेयर , घरेलू उपकरणों का रिपेयर आदि )
कृषि , पशुपालन , और बागवानी
विविध व्यंजनों की जानकारी
देशाटन और भ्रमण
पत्रकारी और विविध माध्यम


इस सम्पूर्ण जानकारी को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है :

(१)स्थायी या सन्दर्भ सामग्री
(२)परिवर्तनशील जानकारी

संजाल टेक्नालोजी की दॄष्टि से देंखें तो परिवर्तनशील जानकारी के लिये चिट्ठे उपयुक्त हैं और स्थायी जानकारी के लिये विकि । विकि पर अंगरेजी में बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है । हम अपनी स्वरचित/मौलिक ज्ञान वहाँ लिख सकते है , अंगरेजी में उपलब्ध अच्छे-अच्छे पन्नों का अनुवाद कर सकते हैं , अंगरेजी के बहुत से पन्ने पढने के बाद उनका सारांश हिन्दी में लिख सकते हैं , और कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि अंगरेजी में उपलब्ध अच्छी जानकारी का लिंक हिन्दी के पन्नों पर दे दें । ये सब चीजें किसी न किसी रूप में उपयोगी हैं । उपलब्ध जानकारी का स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन भी बहुत आवश्यक व लाभकारी होगा ।

एक और भी बहुत जरूरी चीज है । हमे विभिन्न विषयों पर हिन्दी में चर्चा शुरु कर देनी चाहिय्रे । चर्चा-समूह से एक तरफ हिन्दी में विचार-विनिमय को बढावा मिलेगा वहीं हमारे नेटवर्क में सदस्यों की संख्या भी बढेगी । ज्यादा लोग होंगे तो हिन्दी-संजाल में विविधता आयेगी , ज्यादा नये विचार सामने आयेण्गे , और कोई बडा से बडा काम भी मिल-बाँटकर अस्सानी से पूरा कर लिया जायेगा । शुरुवात दो-चार सदस्यों से होगी , पर समय के साथ ये गति पकडेगा । सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता इस बात की है कि हमारा नेटवर्क बडा हो और तेजी से बडा हो । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये हमे ध्यानपूर्वक नीति और युक्ति बनानी पडेगी और सतत प्रयत्न करते रहना होगा । मेरे दिमाग में एक चर्चा-समूह भारत की बिभिन्न क्शेत्रों मे तेजी से विकास के समाचारों और विचारों के विनिमय के लिये बनाने की है ।

अन्तिम और सर्वाधिक महत्व है , विचारपूर्वक सोचे गये कार्य को आरम्भ करने की । यदि हमने सोच लिया है कि विकि पर खान-पान से सम्बन्धित जानकारी हिन्दी में होनी चाहिये तो इसे अबिलम्ब शुरू कर दिया जाना चाहिये - आधे पेज से ही सही । एक छोटा सा कार्य भी हजारों लोगों को कुछ नया करने के लिये प्रेरित करेगा । यह उनके लिये पथ-प्रदर्शक का कार्य भी करेगा ।

हम सबको संजाल की टेक्नालोजी और उसके विकास पर निरन्तर नजर रखनी पडेगी । हमें सदा जागृत रहना पडेगा ताकि ऐसा न होने पाये कि कोई महत्वपूर्ण टेक्नालोजी आये और वो हिन्दी को उपलब्ध न हो । क्योंकि अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि साल-दो साल में इन्टरनेट सबकी जेबों मे रहेगा ।


सारांश रूप में कहना चाहूँगा कि हिन्दी-संजाल पर जुडे लोगों को ब्लाग के लिखने के साथ-साथ महत्वपूर्ण विषयों पर विकि में भी लिखना चाहिये और कम से कम और चार-पाँच चर्चा-समूह हिन्दी में शुरू कर देना चाहिये । जैसे बीज से अंकुर और अंकुर से बीज बनता है ( बीजांकुर न्याय ) वैसे ही हिन्दी-संजाल की विकास-यात्रा भी होगी - संजाल पर ज्यादा हिन्दी-सामग्री होगी तो ज्यादा लोग हिन्दी-संजाल से जुडेगें और फिर अधिक हिन्दी सामग्री की रचना करेंगे ।